हिन्दू धर्म
भारत का सर्वप्रमुख धर्म हिन्दू धर्म है, जिसे इसकी प्राचीनता एवं विशालता के कारण 'सनातन धर्म' भी कहा जाता है। ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के समान हिन्दू धर्म किसी पैगम्बर या व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का समुच्चय है। एक विकासशील धर्म होने के कारण विभिन्न कालों में इसमें नये-नये आयाम जुड़ते गये। वास्तव में हिन्दू धर्म इतने विशाल परिदृश्य वाला धर्म है कि उसमें आदिम ग्रामदेवताओं, भूत-पिशाची, स्थानीय देवी-देवताओं, झाड़-फूँक, तंत्र-मत्र से लेकर त्रिदेव एवं अन्य देवताओं तथा निराकार ब्रह्म और अत्यंत गूढ़ दर्शन तक- सभी बिना किसी अन्तर्विरोध के समाहित हैं और स्थान एवं व्यक्ति विशेष के अनुसार सभी की आराधना होती है।
Hindu Religious System
आर्य समाज / Arya Samaj
उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय इतिहास और साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इतना व्यापक और सूक्ष्म परिवर्तन मध्ययुग में इस्लाम धर्म के सम्पर्क के फलस्वरूप भी न हुआ था।
पुष्टिमार्ग / वल्लभ-सम्प्रदाय / Pushti-Marg / Vallabh-Sampraday
भक्ति का एक संप्रदाय जिसकी स्थापना महाप्रभु वल्लभाचार्य ने की थी।
निम्बार्क संप्रदाय / Nimbark Sect
ध्रुव टीला पर निम्बार्क संप्रदाय का प्राचीन मन्दिर बताया जाता है। निम्बार्क का अर्थ है- नीम पर सूर्य। इस संप्रदाय के संस्थापक भास्कराचार्य एक सन्यासी थे।
सखीभाव संप्रदाय / Sakhi Sect
निम्बार्क मत की एक शाखा जिसके प्रवर्तक हरिदास थे। इस संप्रदाय में श्रीकृष्ण की उपासना सखी भाव से की जाती है। इनके मत से ज्ञान में भवसागर उतारने की क्षमता नहीं है।
शैव मत / शैव संप्रदाय / Shaiv Sect
भारत के धार्मिक सम्प्रदायों में शैवमत प्रमुख हैं। वैष्णव, शाक्त आदि सम्प्रदायों के अनुयायियों से इसके मानने वालों की सख्या अधिक है। शिव त्रिमूर्ति में से तीसरे हैं
वैष्णव धर्म / Vaishanav Dharm
वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है। इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्हैं, ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज |
माध्व सम्प्रदाय / Madhav Sampryday
माध्व वैष्णव एक संगठित समूह में नहीं हैं बल्कि बिखरे हुए हैं। उनके महत्वपूर्ण मन्दिर न तो वृन्दावन में हैं और न ज़िले में कहीं अन्य ही हैं।
ब्रह्मसमाज / Brahmsamaj
उपनिषदों में जिसकी चर्चा है उसी एक ब्रह्म (परमात्मा) की उपासना को अपना इष्ट रखकर राजा राममोहन राय ने कलकत्ता में ब्रह्मसमाज की स्थापना की।
बौद्ध धर्म / Buddhism
बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। इसके संस्थापक महात्मा बुद्ध, शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे। बुद्ध राजा शुद्धोदन के पुत्र थे और इनका जन्मलुंबिनी नामक ग्राम (नेपाल) में हुआ था। वे छठवीं से पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित थे। उनके गुज़रने के बाद अगली पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला, और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया। आज, बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं: थेरवाद, महायान और वज्रयान। बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।
गौतम बुद्ध / Buddha
गौतम बुद्ध का नाम सिद्धार्थ था। सिंहली, अनुश्रुति, खारवेल के अभिलेख, अशोक के सिंहासनारोहण की तिथि, कैण्टन के अभिलेख आदि के आधार पर महात्मा बुद्ध की जन्म तिथि 563 ई.पूर्व स्वीकार की गयी है।
जैन धर्म / Jainism
जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। 'जैन' कहते हैं उन्हें, जो 'जिन' के अनुयायी हों। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने-जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म।
तीर्थंकर / Tirthankar
तीर्थ का अर्थ जिसके द्वारा संसार समुद्र तरा जाए,पार किया जाए और वह अहिंसा धर्म है।
इस विषय में जिन्होंने प्रवर्तन किया, उपदेश दिया, उन्हें तीर्थंकर कहा गया है
महावीर / Mahaveer
वर्धमान महावीर या महावीर, जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री ऋषभनाथ (श्री आदिनाथ)की परम्परा में 24वें तीर्थंकर थे। इनका जीवन काल 599 ईसवी ,ईसा पूर्व से 527 ईस्वी ईसा पूर्व तक माना जाता है।
नेमिनाथ तीर्थंकर / Neminath Tirthankar
- अवैदिक धर्मों में जैन धर्म सबसे प्राचीन है, प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव माने जाते हैं।
- जैन धर्म के अनुसार भी ऋषभ देव का मथुरा से संबंध था।
पार्श्वनाथ / Pashavnath
अरिष्टेनेमि के एक हज़ार वर्ष बाद तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए, जिनका जन्म वाराणसी में हुआ।
इनके पिता राजा अश्वसेन और माता वामादेवी थीं।
एक दिन कुमार पार्श्व वन-क्रीडा के लिए गंगा के किनारे गये।
ॠषभनाथ तीर्थंकर / Rishabhnath Tirthankar
इनमें प्रथम तीर्थंकर ॠषभदेव हैं। जैन साहित्य में इन्हें प्रजापति, आदिब्रह्मा, आदिनाथ, बृहद्देव, पुरुदेव, नाभिसूनु और वृषभ नामों से भी समुल्लेखित किया गया है।